शारदीय नवरात्र के पांचवे दिन हम सभी माँ स्कंदमाता की उपासना करते हैं। माता स्कंदमाता का रूप अति शांतिमय है और जो भी इनकी उपासना करता है उसे मनचाहा फल ज़रूर मिलता है। आइये जानते हैं माता स्कंदमाता की कथा।
एक बार एक तारकासुर नामक असुर ने ब्रम्ह देव की कड़ी उपासना की। प्रसन्न होकर ब्रम्हा देव ने तारकासुर से वर मांगने को कहा। तारकासुर ने अमर वार माँगा तब ब्रम्ह देव ने कहा कि कोई भी प्राणी अमर नहीं हो सकता तुम कोई और वर मांग लो। तारकासुर ने चतुरता से कहा कि केवल भगवान शिव का पुत्र ही उसका वध कर सकता है, क्योंकि वो जानता था कि भगवान शिव कभी विवाह नहीं करेंगे ब्रह्म देव ने उसे ये वर दे दिया। वर मिलने के साथ ही संसार में हाहाकार मच गया। तारकासुर संसार का नाश करने लगा। सभी देवता भगवान शिव से अनुरोध करने लगे कि वे विवाह कर लें। अंत में भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया और उनके पुत्र कार्तिक ने तारकासुर का खात्मा किया। कई स्थानों पर कार्तिक के कृत्तिका नामक छह बहनों का पुत्र कहा गया है तथा माता पार्वती के उन्हें गोद लेने का उल्लेख मिलता है। भगवान कार्तिक को स्कन्द के नाम से भी जाना जाता है और उनकी माता होने के कारण माँ दुर्गा के इस रूप का नाम स्कंदमाता पड़ गया।
माँ स्कंदमाता के इस शांतिमय और फलदायी रूप को हमारा शत-शत नमन।